हैवानियत की हद ...!!
कही पर सुना था की यदि कोई गलती हो जाए तो हो सकता वह सच में गलती से ही हुई हो। पर अगर वही गलती बार-बार दोहराई जाए तो निसंदेह वह सोची समझी साजिश हैं।
आज जब पेपर (20 सितम्बर) पर फ्रंट पेज की खबर पड़ी तो एक पल के लिए रूह काँप गयी। खबर थी बीएसएफ के जवान शहीद श्री नरेंद्र सिंह की। सैय्यादों ने 9 घंटे सेना के जवान को मौत का आइना दिखाया, 9 घंटे तक वो बेहरहमी से तड़पाते रहे, कभी करंट लगाया, पैर काट दिया, आँख निकाल ली और इसके बाद भी, इतनी क्रूरता के बाद भी जब चैन न मिला तो गला घोंट कर गोली मार दी, और अंततः भारत माँ की आन-बान की रक्षा करते हुए एक और फौजी शहीद हो गया।
इस बर्बरता पर कोई प्रश्न खड़े नहीं करता, कोई भी सत्ताधारी आपत्ति लेते हुए मुँह तोड़ जवाबी कार्रवाई का समर्थन नहीं करता और ना कोई विपक्ष में से ढ़ोल पीटता हैं।
केंद्रीय मंत्री इंद्रजीत सिंह बयांन देते है की "यह कोई नई बात नहीं है, पाकिस्तान पहले भी ऐसा करता रहा है।"
क्यों ?
और सबसे बड़ी विडम्बना तब देखने में आई जब कुछ दिन पहले भारतीय सेना के जवान जब एक आतंकवादी को घसीटते हुए ले जाते हैं तब मानवाधिकार का ज़मीर जाग उठता हैं और वह सेना से पूछताछ करता हैं।
सिर्फ कड़ी निंदा करने से और उसूलो पर जमे रहने से कुछ नहीं होगा।
भारत कभी आगे रहकर कभी भी न युद्ध विराम का उल्लंघन करता है ना कभी गोलीबारी। पर कबतक यह धूल खाते हुए उसूल पर सर ऊँचा रखा जाए जब ऐसी यातनाएं हमारे सेना के जवान सह रहे है।
कही पर बाढ़, भूकंप आदि जो भी विपदा आदि सदैव बिना अपनी जान की परवाह किये पुरे देश के साथ फरिश्ते बनकर खड़े रहते हमारे सेना के जवान।
शांतिदूत बनकर आए थे पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री इमरान खान, बड़ा शांति का राग अलापा था, पर उनके कार्यकाल सँभालते ही यह पहली घटना हैवानियत बनकर उभरी हैं।
अब बस जरुरत हैं तो सख़्त कार्रवाई की क्योंकि तिरंगा लहराते हुए, आसमां छूते हुए ही अच्छा लगता हैं ना की बदन पर लिपटा हुआ....!!
शहीद नरेंद्र सिंह अमर रहें....!!
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