कहाँ कहों छवि आपकी, भले विराजे नाथ
'कलयुग का राज्याभिषेक'
22 जनवरी 2024, यह वो दिन था जिसके लिए ना जाने कौनसे पुण्य किए होंगे जो हमारी पीढ़ी इस स्वर्णिम दिन, इस रजतमय पल के साक्षी बने। इस शीत मौसम में परसों के एक-एक पल में, सुनहरी सूर्यकिरण में, आर्द्र हवाओं में मानों अमृत घुला हुआ था। हर तरफ बस एक ही भाव एक ही नारा एक ही नाम:- जय श्री राम, जय श्री राम।
हालांकि यह बोलना गलत होगा की यह कलयुग का राज्याभिषेक था, क्योंकि असल में आपके नाम में ही सारा राजस्व छुपा हुआ हैं और हम लोग तुच्छ मात्र आपका क्या राज्याभिषेक करेंगे, पर अनुभूति पूरी तरह आपके राज्याभिषेक की थी।
रामायण में बड़ी अच्छी चौपाई है, मानो गोस्वामी जी ने उस दिन के लिए ही लिखी थी, बिल्कुल सटीक तरीके से वर्णन करती हैं,
सीतल मंद सुरभि बह बाऊ।
हरषित सुर संतन मन चाऊ॥
बन कुसुमित गिरिगन मनिआरा।
स्रवहिं सकल सरिताऽमृतधारा॥
(प्रथम सोपान, बालकांड, श्रीरामचरितमानस)
भावार्थ-
शीतल, मंद और सुगंधित पवन बह रहा था। देवता हर्षित थे और संतों के मन में (बड़ा) चाव था। वन फूले हुए थे, पर्वतों के समूह मणियों से जगमगा रहे थे और सारी नदियाँ अमृत की धारा बहा रही थीं।
मुझे नही लगता आजाद भारत के बाद भी उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम देश को इतनी एकता के साथ, इतनी उमंग के साथ, पहले कभी देखा गया हो। और देश ही नहीं विदेशों में भी इतनी ही धूम मची हुई थी।
पहले किसी धर्म-कर्म के कार्य करने के बाद बस बोलने में आता था की आज जीवन धन्य हो गया, पर परसों प्रभु की पहली छवि का बस चित्र देखने मात्र से पहली बार इस वाक्य को महसूस किया, वो छवि मन में ऐसी बसी जैसे सच में किसी राजा की छवि, अपने युवराज की छवि अपनी प्रजा के मन में रहती हैं।
इसलिए तुलसीदास जी कहते है :-
कहाँ कहों छवि आपकी, भले विराजे नाथ ।
असल में धैर्य की पराकाष्ठा अगर कोई है तो वो है प्रभु राम।
अगर राम कथा को ढंग से सुनने वाले श्रोता और सुनाने वाले वक्ता हो तो श्री राम वनवास का चरित्र सुन हम इतने भाव विभोर हो जाते है की अपने अश्रुयों को रोक नहीं पाते, पर वो 14 वर्ष का इंतजार आज इन 500 वर्ष के संघर्ष के आगे नतमस्तक हैं। ना जाने कितने बलिदान, हमारी आपकी सोच से परे संघर्ष के बाद यह दिन सामने आया हैं। यह दिन उन सभी के अर्पण, उनके तर्पण, समर्पण का दिन था।
मन इतना भावुक है, हृदय करुणा से भरा हुआ, भाव इतना उत्सुक है, की ऐसा लग रहा यह दिन की अगली सुबह इतनी जल्दी क्यूं हो गई।
हम जब भी वार त्यौहार पर किसी को या किसी के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में बधाई देते है तो अमूमन यही कहते है की भगवान आप पर या आपके परिवार पर कृपा बनाए रखे। पर उस दिन रात में घर जाते-जाते बस एक ही बात मन में बार-बार हिडोले खा रही थी की प्रभु! यह दिन का साक्षी तो आपने बना दिया अब बस हर तरफ इस खुशनुमा माहौल, हर चेहरे पर हँसी, इतना उत्सवी भाव वो भी किसी एक स्थान पर नही, सिर्फ एक शहर, एक देश-प्रदेश नहीं अपितु विश्व के बहुत सारे कोनों में अब यह ऊर्जा, यह खुशनुमा माहौल, स्थाई रूप में होना चाहिए।
मन में बस यही आ रहा था की प्रभु इस देश को अब नजर न लगे ऐसी कृपा बनाए रखना।
सबके मन में बिना किसी जाति-धर्म, रंग-रोगन, हर वर्ण, हर वर्ग, हर तबके के लोगो के मन में बस यही भाव:- मेरे प्रभु राम आए हैं।
और उत्सव भी ऐसा की शहरों में मंदिर कम पड़ गए आयोजनों के लिए, कीर्तन की लिए साधन-संसाधन कम पड़ गए, बाजारों में रौनक इतनी की घर में लगाने झंडे बैनर कम पड़ गए, हर घर हर गली उस दिन अवध बन गई थी।
अद्भुत, अकल्पनीय।
रामायण में अंकित शब्दों में भगवान राम ने कितनो को तारा, कितनो को दर्शन देकर उनका जीवन धन्य किया।
बलशाली, तपस्वी, प्रकांड पंडित, परम ज्ञानी, प्रतापी योद्धा, महान शिवभक्त, और शिवभक्त भी ऐसे की उनको खुश करने के लिए शिव तांडव जैसे सिद्ध स्तोत्र की रचना कर दी, शब्द कम पड़ जाए रावण पर अगर बोला जाए तो, यहां हम हिंदी इंग्लिश लिखने में व्याकरण, मात्रा की गलती की टेंशन लेकर बैठ जाते हैं पर ऐसे विद्वान का भी अहंकार को दूर कर, अपनी मर्यादा में रहकर उसका वध कर लंका पर विजय प्राप्त करी।
हमारे हिंदू धर्म में बड़ा गुमान, बड़ा अहंकार था दीपावली को इतने त्यौहार में सबसे ज्येष्ठ होने का, प्रमुख त्यौहार होने का, पर 22 जनवरी 2024 का साक्षी बना भगवान ने ऐसा दिन भूतो न भविष्यति कर दीपावली का भी अहंकार तोड़ दिया।
और सच में भी 22 जनवरी के दिन दीपावली से भी ज्यादा चैतन्यता थी, चहुँ ओर अलग ही सकारात्मक ऊर्जा थी।
मेरा मन इतना आनंदित है की मेरा मन नही कर रहा की बस यही अपनी लेखनी को विराम दु।
बस यही प्रार्थना है जिस प्रकार आपकी पहली छवि आपके वो जादुई नेत्र, आपके वो चरण कमल, आपके वो मनमोहक मुस्कान, आपकी वो मयूर कपोल, आपके वो रघुवंश चंदन तिलक ने जो ऊर्जा प्रदान करी हैं, वो चरण वंदन हमेशा बनी रहें।
सियावर राम चंद्र की जय🚩
#ayodhya
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