करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान
बचपन में हमेशा से सुना हैं की किसी कार्य में निपुण होना हैं तो अभ्यास जरुरी हैं। श्रीरामचरितमानस में उल्लेख हैं "करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान"।
बस अगर कोई चीज़ हमें किसी से अलग बनाती हैं तो वो हैं उसे करने का का तरीका। किसी ने लिखा हैं की "एक पत्थर ठोकर खाकर कंकर-कंकर हों गया और एक पत्थर ठोकर खाकर शंकर-शंकर हों गया"।
साफ़ समझ आता हैं की काम एक ही हैं पर कोई कंकर हुआ तो कोई शंकर। निरंतर अभ्यास किया जाये तो पारंगत होने में देर नहीं लगेगी। अगर उदाहरण की ओर बात की जाये तो वो हैं एकलव्य का जिन्होंने बिना सीखे, गुरु के अभाव में धनुर्विद्या में ऐसी पारंगत हासिल की जिन गुरु द्रोणाचार्य ने उन्हें अपना शिष्य बनाने से मना कर दिया था, वो भी उस विद्या के कायल हों गए।
एक और शायद इससे अच्छा और उदाहरण नहीं हों सकता वो हैं करोली टेकक्स (Karoly Takacs) का, हंगरी (Hungary) सेना के एक जाबांज़ शूटर जो कई नेशनल, कई खिताबों से नवाज़ा जा चूका था पर जिनका बस एक सपना था की ओलिंपिक में गोल्ड जितना।
1936 तक उनसे अच्छा कोई राइट हैंडेड पिस्टल शूटर पैदा नहीं हुआ था, या हम यह बोल सकते है की पिस्टल शूटिंग में उन्हें महारथ हासिल थीं, पर किन्ही कारणों से वह 1936 का ओलिंपिक नहीं खेल पाए। उन्हें इंतज़ार था तो बस 1940 के ओलिंपिक का जो टोक्यो में होने वाले थे।
1938 में उनके साथ वो हादसा हुआ जिसका न तो कभी वो सोच सकते थे ना हंगरी देश के लोग जिन्हे पूरा विश्वास था की 1940 के ओलिंपिक में हंगरी को गोल्ड करोली टेकक्स ही दिलाएंगे।
चूँकि वह सेना के जवान थे, एक दिन सेना के कैंप में उनके सीधे हाथ में हैंड ग्रेनेड फट गया और जिस हाथ की वजह से शूटिंग में महारथ हासिल थी वो उनके शरीर से अलग हो गया।
पर अगर उनका नाम इतिहास में अंकित है तो ऐसे ही नहीं हैं, अब परिस्तिथि यह थी की जो उनकी ताकत थी, वो नहीं रहा। पर वो हाथ से हारे से, मन से नहीं। उनका पूरा ध्यान बस उनके लक्ष्य पर केंद्रित था की मुझे मेरे देश के लिए गोल्ड जीतना हैं। जो हाथ चला गया उस पर रोने के बजाय उस हाथ पर फोकस करा जो उनके पास था, उनका बायां हाथ और किसी को बिना बताये वह अपने बाएं हाथ को बेस्ट पिस्टल हैंड बनाने में लग गए। जब 1939 में नेशनल चैंपियनशिप में जब दूसरे प्रतिद्वंदियों ने उन्हें देखा तो उनको ख़ुशी हुई की हमारा हौसला अफ़ज़ाई करने, हमें देखने आए हैं पर करोली टेकक्स बोले की तुमसे मुकाबला करने आया हु न की तुम्हारा हौसला बढ़ाने और 1939 के नेशनल चैंपियनशिप से करोली टेकक्स नवाज़े गए।
पर लक्ष्य था की ओलिंपिक में गोल्ड जीतना जो 1940 में होने वाले थे, पर 1940 के साथ-साथ 1944 के भी ओलिंपिक वर्ल्ड वॉर की वजह रद्द हो गए। अब 1948 के ओलिंपिक जिसमे एक देश ही नहीं बल्कि दुनिया के सर्वश्रेष्ठ शूटर आए हुए थे, पर वो बोलते है न "मंज़िल उन्ही को मिलती हैं जिनके सपनों में जान होती हैं, पंखो से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती हैं" और 1948 के साथ 1952 के ओलिंपिक में दुनिया का सर्वश्रेष्ठ शूटर का खिताब मिला।
अब सोचिए की कहा से सफर शुरू था, अपने दाहिने हाथ जो बेस्ट था उसको खोने के बावजूद अपने बाएं हाथ को अपनी ताकत बना कर इतिहास के पन्नों में नाम अंकित किया।
यहाँ सिर्फ कबीर का एक दोहा याद आता हैं, उन्होंने कहा है:- मन के हारे हार है मन के जीते जीत.....
धैर्य, साहस, मानसिक स्थिरता, लक्ष्य, खुद पर और खुद की क़ाबिलियत पर भरोसा आदि बहुत सी बातें इस एक कहानी से सिखने मिलती हैं।
हम अक्सर एक हार से ऐसे टूट जाते हैं जैसे दूजा कोई रास्ता ही नहीं बचा हों। समझ नहीं आता की अब आगे क्या होग़ा ?
मैंने ही लिखा था की "आगे का रास्ता बहुत दूर-सा लगता हैं, अब तो हर दिन बहुत ऊब-सा लगता हैं "
क्योंकि ऐसा ही लगने लगता हैं, दिन काटे नहीं कटते हैं। समझ नहीं आता की जो रास्ता अपनाया हैं वो सही भी हैं ? प्रश्नचिन्ह आता हैं मन में,
पर मुझें बस यही लगता हैं की ऐसे समय में जरुरत हैं तो सिर्फ आत्मविश्वास की, अपने आप के साथ-साथ ऊपर वाले पर भी भरोसे की। क्योंकि, यह भी लिखा था कभी मैंने की :-
"यह राह चुनी तो आसां नहीं होंगी,
थोड़ी सी मुश्किल तो थोड़ी रुकावट तो होंगी,
पर तु रख भरोसा आप पर और उस ऊपर वाले पर, क्योंकि,
जो भी होगा जैसा भी होगा पर, हार न होंगी ..."
क्योंकि ऐसा ही लगने लगता हैं, दिन काटे नहीं कटते हैं। समझ नहीं आता की जो रास्ता अपनाया हैं वो सही भी हैं ? प्रश्नचिन्ह आता हैं मन में,
पर मुझें बस यही लगता हैं की ऐसे समय में जरुरत हैं तो सिर्फ आत्मविश्वास की, अपने आप के साथ-साथ ऊपर वाले पर भी भरोसे की। क्योंकि, यह भी लिखा था कभी मैंने की :-
"यह राह चुनी तो आसां नहीं होंगी,
थोड़ी सी मुश्किल तो थोड़ी रुकावट तो होंगी,
पर तु रख भरोसा आप पर और उस ऊपर वाले पर, क्योंकि,
जो भी होगा जैसा भी होगा पर, हार न होंगी ..."
यही हालात रहते पर बस जरूरत हैं तो आत्मविश्वास की। क्योंकि जो होता हैं वह अच्छे के लिए ही होता हैं।
हरिवंश राय बच्चन जी ने कहा हैं:-
"लहरों से डर कर नौका पार नहीं होतीं , कोशिश करने वालों की हार नहीं होती"..
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"Practice Makes Perfect" |
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