“हिन्दी हैं हम”


हिंदी का इतिहास वर्षों पुराना हैं। यह सिर्फ़ एक ज़बान हीं नहीं बल्कि सांगोपांग तरीक़े से तहज़ीब भी हैं। हिन्दी के शब्द, और हिन्दी भाषा में हीं मिठास झलकतीं हैं।

और एक तरीक़े से देखा जाए तो हिन्दी का ह्रदय विशाल हैं जों अपने अधीन बहुत सीं उपभाषाए को समेटा हुआ हैं, जैसे:- मालवी, अवधी, ब्रजभाषा इत्यादि।

1977 में जनता सरकार में विदेश मंत्री के तौर पर काम कर रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने जब संयुक्त राष्ट्रसंघ में अपना पहला भाषण हिंदी में दिया तब पुरे सदन ने खड़े होकर अभिवादन किया था। हिन्दी दुनियाभर की भाषाओ में अपना विशेष स्थान, अपनी महत्वत्ता के कारण बनाई हुईं हैं।

किसी ने कटाक्ष करते हुए कहाँ हैं कीं जिस देश में हिंदी के लियें “2” दबाना पड़े, वह उस देश कीं राजभाषा कैसे हों सकतीं हैं?
पर अगर देखा जाए तो आज हिन्दी बोलने में लोग शर्म महसूस करते हैं, मुझे नहीं पता क्यों ऐसा हैं पर में बस इतना हीं बोलना चाहूँगा कीं हिन्दी हिंदुस्तान की सिर्फ़ भाषा नहीं बल्कि मातृभाषा हैं, और दुनिया कीं भाषायें भले कितनी हीं अच्छी हों पर मेरी माँ से ख़ूबसूरत नहीं हों सकतीं।
सिर्फ़ हिन्दी में हीं ताक़त हैं जों “अ” से अनपढ़ को लेकर “ज्ञ” से ज्ञानी बना सकतीं हैं, और यहीं इसकी विशिष्टता हैं।

आज हिन्दी दिवस हैं। उन सभी साहित्यकारों, लेखकों आदि लोगो को प्रणाम जो भाषा रुपी बीज को सहेजे हुए है। क्योंकि आज अगर यह सहेजा ना गया तो कल सरस्वती नदी जैसा विलुप्त होने में देर नहीं लगेगी।

                                        --Puneet Dubey...

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