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करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान

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बचपन में हमेशा से सुना हैं की किसी कार्य में निपुण होना हैं तो अभ्यास जरुरी हैं। श्रीरामचरितमानस में उल्लेख हैं "करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान"। बस अगर कोई चीज़ हमें किसी से अलग बनाती हैं तो वो हैं उसे करने का का तरीका। किसी ने लिखा हैं की "एक पत्थर ठोकर खाकर कंकर-कंकर हों गया और एक पत्थर ठोकर खाकर शंकर-शंकर हों गया"। साफ़ समझ आता हैं की काम एक ही हैं पर कोई कंकर हुआ तो कोई शंकर। निरंतर अभ्यास किया जाये तो पारंगत होने में देर नहीं लगेगी। अगर उदाहरण की ओर बात की जाये तो वो हैं एकलव्य का जिन्होंने बिना सीखे, गुरु के अभाव में धनुर्विद्या में ऐसी पारंगत हासिल की जिन गुरु द्रोणाचार्य ने उन्हें अपना शिष्य बनाने से मना कर दिया था, वो भी उस विद्या के कायल हों गए।  एक और शायद इससे अच्छा और उदाहरण नहीं हों सकता वो हैं करोली टेकक्स (Karoly Takacs) का, हंगरी (Hungary) सेना के एक जाबांज़ शूटर जो कई नेशनल, कई खिताबों से नवाज़ा जा चूका था पर जिनका बस एक सपना था की ओलिंपिक में गोल्ड जितना।  1936 तक उनसे अच्छा कोई राइट हैंडेड पिस...

हैवानियत की हद ...!!

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कही पर सुना था की यदि कोई गलती हो जाए तो हो सकता वह सच में गलती से ही हुई हो। पर अगर वही गलती बार-बार दोहराई जाए तो निसंदेह वह सोची समझी साजिश हैं।  आज जब पेपर (20 सितम्बर) पर फ्रंट पेज की खबर पड़ी तो एक पल के लिए रूह काँप गयी। खबर थी बीएसएफ के जवान शहीद श्री नरेंद्र सिंह की। सैय्यादों ने 9 घंटे सेना के जवान को मौत का आइना दिखाया, 9 घंटे तक वो बेहरहमी से तड़पाते रहे, कभी करंट लगाया, पैर काट दिया, आँख निकाल ली और इसके बाद भी, इतनी क्रूरता के बाद भी जब चैन न मिला तो गला घोंट कर गोली मार दी, और अंततः भारत माँ की आन-बान की रक्षा करते हुए एक और फौजी शहीद  हो गया।  इस बर्बरता पर कोई प्रश्न खड़े नहीं करता, कोई भी सत्ताधारी आपत्ति लेते हुए मुँह तोड़ जवाबी कार्रवाई का समर्थन नहीं करता और ना कोई विपक्ष में से ढ़ोल पीटता हैं।  केंद्रीय मंत्री इंद्रजीत सिंह बयांन देते है की "यह कोई नई बात नहीं है, पाकिस्तान पहले भी ऐसा करता रहा है।" क्यों ? और सबसे बड़ी विडम्बना तब देखने में आई जब कुछ दिन पहले भारतीय सेना के जवान जब एक आतंकवादी...

“हिन्दी हैं हम”

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हिंदी का इतिहास वर्षों पुराना हैं। यह सिर्फ़ एक ज़बान हीं नहीं बल्कि सांगोपांग तरीक़े से तहज़ीब भी हैं। हिन्दी के शब्द, और हिन्दी भाषा में हीं मिठास झलकतीं हैं। और एक तरीक़े से देखा जाए तो हिन्दी का ह्रदय विशाल हैं जों अपने अधीन बहुत सीं उपभाषाए को समेटा हुआ हैं, जैसे:- मालवी, अवधी, ब्रजभाषा इत्यादि। 1977 में जनता सरकार में विदेश मंत्री के तौर पर काम कर रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने जब संयुक्त राष्ट्रसंघ में अपना पहला भाषण हिंदी में दिया तब पुरे सदन ने खड़े होकर अभिवादन किया था। हिन्दी दुनियाभर की भाषाओ में अपना विशेष स्थान, अपनी महत्वत्ता के कारण बनाई हुईं हैं। किसी ने कटाक्ष करते हुए कहाँ हैं कीं जिस देश में हिंदी के लियें “2” दबाना पड़े, वह उस देश कीं राजभाषा कैसे हों सकतीं हैं? पर अगर देखा जाए तो आज हिन्दी बोलने में लोग शर्म महसूस करते हैं, मुझे नहीं पता क्यों ऐसा हैं पर में बस इतना हीं बोलना चाहूँगा कीं हिन्दी हिंदुस्तान की सिर्फ़ भाषा नहीं बल्कि मातृभाषा हैं, और दुनिया कीं भाषायें भले कितनी हीं अच्छी हों पर मेरी माँ से ख़ूबसूरत नहीं हों सकतीं। सिर्फ़ हिन्दी में हीं ताक़त ...