Posts

Showing posts from 2019

दरिंदगी की भी हद

Image
बीते कुछ दिनों से जो 3-4 घटनाये सामने आयी हैं, उनसे आज के समाज का वो काला चेहरा सामने आ रहा हैं, जो समाज के बीच में ही नक़ाब पहना हुआ हैं। चाहे हो अलीगढ़ हों, उज्जैन हों, हमीरपुर हों या आज राजधानी भोपाल की घटना हों। ऐसी नृशंस हत्याएं बूढ़े कानून का नतीज़ा हैं। जहाँ एक तरफ़ सरकारें गाजे-बाजे के साथ "बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ" ढोल पीट रहीं, वही दूसरी तरफ़ नतीज़े शर्मनाक आ रहें। ज़रा देखें तो हँसने-खेलने की उम्र में मासूमो की मौत परिवार के लिए वो घाव हैं जिसे वो कभी मिटा नहीं सकते। जिस घर में किलकारी गूंजती थी आज उसके फोटो के आगे सिर्फ यादों के साथ बैठना, कराहना किसी नर्क से कम नहीं। 2 साल, 10 साल, 11 साल यह उम्र में ऐसी दरिंदगी सिर्फ हैवानियत हैं। कुछ राजनीति रुपी मोमबत्तियां ही जलाने का समय आ गया हैं, जो कुछ नारीवादी लोग जलाएंगे, शासन-प्रशासन को उस परिवार का दर्द कभी दिखेगा ही नहीं। अभी उज्जैन में कुछ दिन पहले नगर निगम के जिम्मेदार बेहरुपियो की लापरवाही एक मासूम बच्चे की मौत  का कारण बनीं, पार्क में रखीं बेंच गिरने से 11 वर्षीय बालक की मौत। बस अब आरोप इधर-...

"घर की खुशबू ही माँ हैं"

Image
 "माँ"  कितना खूबसूरत सा अक्षर हैं.... एक ऐसा किरदार जिसे जैसा जहॉ भी ढालो, वो अपने दायित्व से कभी नहीं मुकरती। चाहे जो भी परिस्थति हों मैने कभी माँ को थकते नहीं देखा।  माँ एक मोम की तरह जो हर परिस्थियों में डटे रहती हैं, और अगर नहीं तो खुद तो पिघल जाती हैं पर बशर्ते पुरे समां को रोशनी से जगमगा कर।  पूरा घर ही माँ से रौशन है, घर की रौनक माँ हैं, घर की खुशबू ही माँ हैं। माँ ईश्वर का वो सुन्दर सृजन है जिसे स्वयं ईश्वर भी पूजता हैं। माँ के भी अनेक रूप हैं, इस संसार का भरण-पौषण ही उस आद्यशक्ति माँ के हाथों में हैं। चाहे वो अन्नपूर्णा हो या चाहे माँ गंगा।  एक माँ का किरदार ही हर घर को जीवंत बनाए रखता हैं।  कल में जब यह लिख रहा था तब मुझसे मेरे दोस्त ने जिज्ञासा वश पूछा था की अगर माँ कभी अपनों का बुरा कभी नहीं चाहती तो रामायण में कैकई जो राम को सबसे ज्यादा स्नेह करती थीं, उन्होंने वनवास क्यों दिया ? कैकई ने राजा दशरथ से पहले वचन लिया उसके बाद बोला:- " देहु एक बर ...

कुंभ 2019

Image
अभी महाशिवरात्रि पर प्रयागराज में अर्धकुम्भ का समापन हुआ। इस कुंभ में लगभग 25 करोड़ लोगो ने संगम में आस्था की डुबकी लगाई। मुझे याद है 2016 में जब उज्जैन में सिंहस्थ था, तब उसके समापन के बाद नानाजी से सिंहस्थ से जुडी कुछ बात कर रहा था, तब उन्होंने एक कविता सुनाई। सिंहस्थ साधु-संतो का त्यौहार हैं, अलग अलग अखाड़ों से साधु आते हैं, सब अपनी मस्ती में मस्त। उनके विभिन्न प्रकार के रूप देखने को मिलते हैं, इसपर नानाजी ने जो बताया वो आज भी याद हैं, आज उनकी याद आयी तो यह कविता याद आयी। वें बोलें :- नख बिन कटा देखें, शीश भारी जटा देखें, साधु कन फटा देखें, छार लगाए तन में, मौनी अनमोल देखें, सेवड़ा सिरछौल देखें, करत तपस्या देखें, वनखंडी वन में, शूर देखें, वीर देखें, सब धनी और कूर देखें, माया के पूर देखें, जो भूल रहें हैं धन में, आदि अनंत सुखी देखें, जन्मों के दुखी देखें, पर साधु वो नहीं देखें, जिनके लोभ नहीं मन में...

न स्त्रीरत्नसमं रत्नम

Image
आज कुछ पोस्ट देख रहा था उसमें बहुत अच्छी बात पढ़ने में आयीं कीं जब आप एक लड़के को शिक्षित बनाते हों तो उसकी शिक्षा उस तक हीं सीमित रहती हैं, पर जब एक लड़की को शिक्षित बनाते हों तो पूरी एक पीढ़ी को शिक्षित बनाने के समान हैं। वाक़ई में नारी ईश्वर कीं वो सुंदर रचना हैं जिसकी किसी से तुलना करने का सोच भी नहीं सकते। हर एक किरदार को बख़ूबी सिर्फ़ एक महिला हीं निभा सकती हैं। किरदार से मतलब चाहे माँ का रूप हों, बहन का प्यार हों, बेटी की किलक़िलाहट हों... मनुस्मृति में लिखा है:- यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवत:। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:।। (मनुस्मृति 3/56) अर्थात् जहाँ स्त्रियों का आदर किया जाता है, वहाँ देवता रमण करते हैं और जहाँ स्त्री का अनादर होता है, वहाँ सब कार्य निष्फल होते हैं। और अभी से नहीं, पुराणो से स्त्री को पहले स्थान पर दर्जा दिया गया हैं। सीता-राम, राधा-कृष्ण। नारी को शक्ति का रूप भी कहा गया हैं, शक्ति बिन तो आदिदेव शिव भी अधूरे हैं। देखा जाए तो हर चीज़ नारी से जुड़ी हैं या यह बोल सकते कीं उसके बिना अधूरी हैं:- जल, जीवन, प्रकृ...

बोलती तस्वीरें...

Image
बोलती तस्वीरें.... !!! पिछले कुछ दिनों में सोशल मीडिया पर कुछ फोटो देखने में आये हैं जो अपने आप बोलने में सक्षम हैं और हर तस्वीरें कही न कही आजकल की राजनीति का चेहरा दर्शाती हैं। राजनीति का अर्थ उसके शब्द में ही झलकता हैं, "राज करने की नीति"। पर आज के समय में राजनीति जैसे सिर्फ धर्म की, समाज की, जातियों की, चापलूसों की, चाटुकारिता की ही हो गयी हैं।  यह जो ऊपर लिखा है इसमें से एक भी राजनीति में नहीं आना चाहिए बल्कि धर्म के उत्थान की, समाजो के कल्याण की, भुखमरी की, बेरोजगारी इत्यादि की होना चाहिए।  विचारणीय हैं राम मंदिर के नाम से, गौ माता के नाम से, और अब तो भगवान् हनुमान भी इसमें लपेटे हुए दिख रहे हैं। दलित, जाट, जैन, मुस्लिम और ना जाने कौन-कौन सी जाती रूपी मोतियों की माला भगवान् हनुमान को अर्पण कर दी गयी हैं। मुझे नहीं पता की यह फोटो कबक़े हैं। पर आज भी ऐसे दृश्य देखने को मिलना सामान्य बात हैं। देखकर मन में सिर्फ एक ही प्रश्न आता हैं। क्या सही में मेरा देश बदल  रहा हैं ? यह दोनों फोटो ही बोलते हुए फोटो हैं। देखते ही समझ...