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कहाँ कहों छवि आपकी, भले विराजे नाथ

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'कलयुग का राज्याभिषेक' 22 जनवरी 2024, यह वो दिन था जिसके लिए ना जाने कौनसे पुण्य किए होंगे जो हमारी पीढ़ी इस स्वर्णिम दिन, इस रजतमय पल के साक्षी बने। इस शीत मौसम में परसों के एक-एक पल में, सुनहरी सूर्यकिरण में, आर्द्र हवाओं में मानों अमृत घुला हुआ था। हर तरफ बस एक ही भाव एक ही नारा एक ही नाम:- जय श्री राम, जय श्री राम। हालांकि यह बोलना गलत होगा की यह कलयुग का राज्याभिषेक था, क्योंकि असल में आपके नाम में ही सारा राजस्व छुपा हुआ हैं और हम लोग तुच्छ मात्र आपका क्या राज्याभिषेक करेंगे, पर अनुभूति पूरी तरह आपके राज्याभिषेक की थी। रामायण में बड़ी अच्छी चौपाई है, मानो गोस्वामी जी ने उस दिन के लिए ही लिखी थी, बिल्कुल सटीक तरीके से वर्णन करती हैं,  सीतल मंद सुरभि बह बाऊ।  हरषित सुर संतन मन चाऊ॥ बन कुसुमित गिरिगन मनिआरा।  स्रवहिं सकल सरिताऽमृतधारा॥ (प्रथम सोपान, बालकांड, श्रीरामचरितमानस) भावार्थ- शीतल, मंद और सुगंधित पवन बह रहा था। देवता हर्षित थे और संतों के मन में (बड़ा) चाव था। वन फूले हुए थे, पर्वतों के समूह मणियों से जगमगा रहे थे और सारी नदियाँ अमृत की धारा बहा रही थीं। मुझे न...

मृत्यु की बदलती रीतियां

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मृत्यु की बदलती रीतियां एक बेहतरीन गायक और शानदार शख्सियत कृष्णकुमार कुन्नाथ 'केके' मात्र 53 वर्ष की आयु में अचानक उस वक्त अपने फैंस को स्तब्ध छोड़कर हमेशा हमेशा के लिए शांत हो गए जब वे कोलकाता के एक लाइव कार्यक्रम में मंच पर परफॉर्म कर रहे थे। अपना सबसे पसंदीदा काम करते हुए यानी गाने गाते हुए उन्होंने आखिरी साँसें ली, एक यही बात सोचकर उनके फैंस जरा सी तसल्ली महसूस कर सकते हैं। सोचने में आता है की अन्य सेलेब्रिटीज़ की तरह उन्होंने भी उस दिन हैल्दी ब्रेकफास्ट लिया होगा, दैनिक व्यायाम, योगा या जिम वर्कआउट किया होगा। कुछ लोगों के साथ व्यावसायिक मीटिंग्स की होंगीं। कार्यक्रम के लिए टिपटॉप तैयार होकर मंच पर पहुंचे होंगे जहाँ उन्हें एक यादगार हाई एनर्जी परफॉर्मेंस देनी थी। उनके शेड्यूल में अगले कुछ महीनों के कार्यक्रम पूर्व निर्धारित रहे होंगे। हो सकता है व्यस्तता इससे भी अधिक रही होंगी। दो दिन पहले जब 28 वर्षीय सिद्धू मूसेवाला की हत्या हुई, उनके पिता का वो बेबस चेहरा, उनके फैंस के सामने वो पगड़ी निकाल कर क्रतज्ञपन व आभार ज्ञापित करके का तरीका आंखे नम कर देने वाला था। भले उनके अंतिम सं...

शाश्वत जिजीविषा

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आदरांजलि दादाजी :- एक ऐसी जिजीविषा जिसके हौसले हमेशा से बुलंद रहे, जो कभी थके नहीं ना मन से और ना ही तन से।  बैरसिया नगर के वो मधु महाराज जिन्हे नाम से ज्यादा उनके अंदाज़ व् उनके किरदार से जाना जाता था। किरदार चाहे हेड मास्टरी हो, रामलीला हो, पंडिताई हो। दादाजी जिनसे मिलते उनके होकर रह जाते थे। आज भी जब विविध जगह से जुड़े हुए लोग आते तो एक ना एक उनसे जुड़ा हास्यास्पद किस्सा सुना कर ही जाते। दादाजी ने अपनी सारी जिंदगी तो पूजन-पाठ में निकाली ही सही और जब अंत समय आया तो उस दिन भी राम रक्षा स्तोत्र का दिन भर पाठ कर अपनी "हनुमान अष्टमी" सार्थक कर ली। रामलीला के 'परशुराम' बैरसिया में लगभग 150 साल से भी ज्यादा पुरानी रामलीला होती हैं। दादाजी ने भी उसमे पाठ करे, पिताजी ने भी करे और मैंने भी। जब कभी घर पर कोई चित-परिचित दादाजी के पास आते और बोलते की अब तो आप से बनती गुरुजी नहीं पहले तो बढ़िया रामलीला पाठ करते थे, ठीक उसी क्षण गुरूजी अपना हाथ का काम छोड़, अपने हाथ अपनी बाजुओं पर रखते और तनिक अपनी भौंहे चढ़ा सुनाते :-   मेरे इस लौहू कुल्हाडे़ ने लोहू की नदी बहा दी है। इस आर्य भूमि ...

एक और निर्भया ...

और एक बार फ़िर मशाल लगेगी, मोमबत्तियां जलेगी, राजनीतिक रोटियां सिकेंगी, लिपा-पोती होगी, आनन-फानन में तबादले, सरकारी आश्वासन, मुआवजे, जस्टिस इत्यादि। घटना हाथरस (यू.पी) की हैं जहां 20 साल की लड़की को निर्भया की भांति तड़पाया गया। यह सब आज और कल की घटना नहीं है बल्कि 15 दिन पुरानी हैं और इन सब में सबसे बड़ी बात यह कि जिसे हम लोकतंत्र का चौथा स्तंभ का दर्जा देते हैं, वो पिछले 15 दिन से स्पेशल कवरेज सिर्फ ज्वलंत मुद्दा जो देश को दिखाना बहुत जरूरी है चाहे वो दीपिका पादुकोण के 'माल है क्या' हो या पायल घोष की आवाज़ को दिखाना हो। अगर यही घटना कुछ दिन पहले मीडिया पर ही दिखाई गई होती तो शायद समय पर इलाज और इंसाफ दोनों मिल जाए और मासूम की जिंदगी बच जाती। अब जरूर जहां-जहां प्रदर्शन होंगे चाहे वो दिल्ली हो या हाथरस या अन्य कोई जगह सब जगह से ग्राउंड रिपोर्ट और स्पेशल कवरेज हमारी थाली में परोसा जाएगा। चुनाव के दिनों में हर ज़िले हर कस्बे से रिपोर्ट पेश की जाती हैं, फिर यह क्यों नहीं? क्या बॉलीवुड का ड्रग्स कनेक्शन के अलावा भी देश में कोई मुद्दा नहीं बचा? न्यूज़ में भी अभी हेडलाइन में लड़की के...

साधु-संत के तुम रखवाले, असुर निकंदन राम दुलारे

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हे प्रभु...  शायद पहली बार मन इतने रुदन भाव से कुछ लिखने को आतुर हैं। महाराष्ट्र पालघर की ऐसी नृशंस लोमहर्षक घटना हृदय विदारक है। दो साधु सुशील महाराज (35) और महाराज कल्पवृक्षगिरि (70) अपने गुरु/दोस्त के अंतिम दर्शन के लिए जा रहे थे। पर कहा अंदाज़ा था की नरभक्षियों के हाथों ऐसी मौत मिलेगी जो मानवता के नाम पर थू हैं। वो भी उस छत्रपति शिवाजी की धरती पर जिसके रक्त की एक-एक बूंद अपने धर्म के लिए समर्पित थी।  कौन लोग थे, कहाँ से थे, कौन मज़हब से थे, मुझे बिल्कुल नहीं पता। पर जब मैंने उनका वायरल वीडियो देखा जिसमें लाठीधारी लोग जघन्य तरीके से मार रहे हैं तो अपने आँसुओ को रोक नहीं पाया। उस वीडियो में मैंने उन बुजुर्ग के साथ-साथ उस विकलांग क़ानून को भी देखा जो शायद इतना लाचार था की सिर्फ तमाशबीन बनकर देखता रहा, रक्षा करने वाला खुद को किनारे करता रहा और धर्म के रक्षक को आगे धकेलता रहा। और उस बुजुर्ग का आशावादी चेहरा जो उस अपंग क़ानून की आड़ लेकर मदद की अपेक्षा कर रहा था।  और यह सब तब घटित हुआ जब देश में एक तरफ हर एक शख्श महामारी से लड़ रहा है। सरकार, प्रशासन, हेल्थ सर्विस से जुड़े हर एक ...

दरिंदगी की भी हद

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बीते कुछ दिनों से जो 3-4 घटनाये सामने आयी हैं, उनसे आज के समाज का वो काला चेहरा सामने आ रहा हैं, जो समाज के बीच में ही नक़ाब पहना हुआ हैं। चाहे हो अलीगढ़ हों, उज्जैन हों, हमीरपुर हों या आज राजधानी भोपाल की घटना हों। ऐसी नृशंस हत्याएं बूढ़े कानून का नतीज़ा हैं। जहाँ एक तरफ़ सरकारें गाजे-बाजे के साथ "बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ" ढोल पीट रहीं, वही दूसरी तरफ़ नतीज़े शर्मनाक आ रहें। ज़रा देखें तो हँसने-खेलने की उम्र में मासूमो की मौत परिवार के लिए वो घाव हैं जिसे वो कभी मिटा नहीं सकते। जिस घर में किलकारी गूंजती थी आज उसके फोटो के आगे सिर्फ यादों के साथ बैठना, कराहना किसी नर्क से कम नहीं। 2 साल, 10 साल, 11 साल यह उम्र में ऐसी दरिंदगी सिर्फ हैवानियत हैं। कुछ राजनीति रुपी मोमबत्तियां ही जलाने का समय आ गया हैं, जो कुछ नारीवादी लोग जलाएंगे, शासन-प्रशासन को उस परिवार का दर्द कभी दिखेगा ही नहीं। अभी उज्जैन में कुछ दिन पहले नगर निगम के जिम्मेदार बेहरुपियो की लापरवाही एक मासूम बच्चे की मौत  का कारण बनीं, पार्क में रखीं बेंच गिरने से 11 वर्षीय बालक की मौत। बस अब आरोप इधर-...

"घर की खुशबू ही माँ हैं"

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 "माँ"  कितना खूबसूरत सा अक्षर हैं.... एक ऐसा किरदार जिसे जैसा जहॉ भी ढालो, वो अपने दायित्व से कभी नहीं मुकरती। चाहे जो भी परिस्थति हों मैने कभी माँ को थकते नहीं देखा।  माँ एक मोम की तरह जो हर परिस्थियों में डटे रहती हैं, और अगर नहीं तो खुद तो पिघल जाती हैं पर बशर्ते पुरे समां को रोशनी से जगमगा कर।  पूरा घर ही माँ से रौशन है, घर की रौनक माँ हैं, घर की खुशबू ही माँ हैं। माँ ईश्वर का वो सुन्दर सृजन है जिसे स्वयं ईश्वर भी पूजता हैं। माँ के भी अनेक रूप हैं, इस संसार का भरण-पौषण ही उस आद्यशक्ति माँ के हाथों में हैं। चाहे वो अन्नपूर्णा हो या चाहे माँ गंगा।  एक माँ का किरदार ही हर घर को जीवंत बनाए रखता हैं।  कल में जब यह लिख रहा था तब मुझसे मेरे दोस्त ने जिज्ञासा वश पूछा था की अगर माँ कभी अपनों का बुरा कभी नहीं चाहती तो रामायण में कैकई जो राम को सबसे ज्यादा स्नेह करती थीं, उन्होंने वनवास क्यों दिया ? कैकई ने राजा दशरथ से पहले वचन लिया उसके बाद बोला:- " देहु एक बर ...