"घर की खुशबू ही माँ हैं"

"माँ" कितना खूबसूरत सा अक्षर हैं.... एक ऐसा किरदार जिसे जैसा जहॉ भी ढालो, वो अपने दायित्व से कभी नहीं मुकरती। चाहे जो भी परिस्थति हों मैने कभी माँ को थकते नहीं देखा। माँ एक मोम की तरह जो हर परिस्थियों में डटे रहती हैं, और अगर नहीं तो खुद तो पिघल जाती हैं पर बशर्ते पुरे समां को रोशनी से जगमगा कर। पूरा घर ही माँ से रौशन है, घर की रौनक माँ हैं, घर की खुशबू ही माँ हैं। माँ ईश्वर का वो सुन्दर सृजन है जिसे स्वयं ईश्वर भी पूजता हैं। माँ के भी अनेक रूप हैं, इस संसार का भरण-पौषण ही उस आद्यशक्ति माँ के हाथों में हैं। चाहे वो अन्नपूर्णा हो या चाहे माँ गंगा। एक माँ का किरदार ही हर घर को जीवंत बनाए रखता हैं। कल में जब यह लिख रहा था तब मुझसे मेरे दोस्त ने जिज्ञासा वश पूछा था की अगर माँ कभी अपनों का बुरा कभी नहीं चाहती तो रामायण में कैकई जो राम को सबसे ज्यादा स्नेह करती थीं, उन्होंने वनवास क्यों दिया ? कैकई ने राजा दशरथ से पहले वचन लिया उसके बाद बोला:- " देहु एक बर ...