करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान

बचपन में हमेशा से सुना हैं की किसी कार्य में निपुण होना हैं तो अभ्यास जरुरी हैं। श्रीरामचरितमानस में उल्लेख हैं "करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान"। बस अगर कोई चीज़ हमें किसी से अलग बनाती हैं तो वो हैं उसे करने का का तरीका। किसी ने लिखा हैं की "एक पत्थर ठोकर खाकर कंकर-कंकर हों गया और एक पत्थर ठोकर खाकर शंकर-शंकर हों गया"। साफ़ समझ आता हैं की काम एक ही हैं पर कोई कंकर हुआ तो कोई शंकर। निरंतर अभ्यास किया जाये तो पारंगत होने में देर नहीं लगेगी। अगर उदाहरण की ओर बात की जाये तो वो हैं एकलव्य का जिन्होंने बिना सीखे, गुरु के अभाव में धनुर्विद्या में ऐसी पारंगत हासिल की जिन गुरु द्रोणाचार्य ने उन्हें अपना शिष्य बनाने से मना कर दिया था, वो भी उस विद्या के कायल हों गए। एक और शायद इससे अच्छा और उदाहरण नहीं हों सकता वो हैं करोली टेकक्स (Karoly Takacs) का, हंगरी (Hungary) सेना के एक जाबांज़ शूटर जो कई नेशनल, कई खिताबों से नवाज़ा जा चूका था पर जिनका बस एक सपना था की ओलिंपिक में गोल्ड जितना। 1936 तक उनसे अच्छा कोई राइट हैंडेड पिस...