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शाश्वत जिजीविषा

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आदरांजलि दादाजी :- एक ऐसी जिजीविषा जिसके हौसले हमेशा से बुलंद रहे, जो कभी थके नहीं ना मन से और ना ही तन से।  बैरसिया नगर के वो मधु महाराज जिन्हे नाम से ज्यादा उनके अंदाज़ व् उनके किरदार से जाना जाता था। किरदार चाहे हेड मास्टरी हो, रामलीला हो, पंडिताई हो। दादाजी जिनसे मिलते उनके होकर रह जाते थे। आज भी जब विविध जगह से जुड़े हुए लोग आते तो एक ना एक उनसे जुड़ा हास्यास्पद किस्सा सुना कर ही जाते। दादाजी ने अपनी सारी जिंदगी तो पूजन-पाठ में निकाली ही सही और जब अंत समय आया तो उस दिन भी राम रक्षा स्तोत्र का दिन भर पाठ कर अपनी "हनुमान अष्टमी" सार्थक कर ली। रामलीला के 'परशुराम' बैरसिया में लगभग 150 साल से भी ज्यादा पुरानी रामलीला होती हैं। दादाजी ने भी उसमे पाठ करे, पिताजी ने भी करे और मैंने भी। जब कभी घर पर कोई चित-परिचित दादाजी के पास आते और बोलते की अब तो आप से बनती गुरुजी नहीं पहले तो बढ़िया रामलीला पाठ करते थे, ठीक उसी क्षण गुरूजी अपना हाथ का काम छोड़, अपने हाथ अपनी बाजुओं पर रखते और तनिक अपनी भौंहे चढ़ा सुनाते :-   मेरे इस लौहू कुल्हाडे़ ने लोहू की नदी बहा दी है। इस आर्य भूमि ...