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साधु-संत के तुम रखवाले, असुर निकंदन राम दुलारे

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हे प्रभु...  शायद पहली बार मन इतने रुदन भाव से कुछ लिखने को आतुर हैं। महाराष्ट्र पालघर की ऐसी नृशंस लोमहर्षक घटना हृदय विदारक है। दो साधु सुशील महाराज (35) और महाराज कल्पवृक्षगिरि (70) अपने गुरु/दोस्त के अंतिम दर्शन के लिए जा रहे थे। पर कहा अंदाज़ा था की नरभक्षियों के हाथों ऐसी मौत मिलेगी जो मानवता के नाम पर थू हैं। वो भी उस छत्रपति शिवाजी की धरती पर जिसके रक्त की एक-एक बूंद अपने धर्म के लिए समर्पित थी।  कौन लोग थे, कहाँ से थे, कौन मज़हब से थे, मुझे बिल्कुल नहीं पता। पर जब मैंने उनका वायरल वीडियो देखा जिसमें लाठीधारी लोग जघन्य तरीके से मार रहे हैं तो अपने आँसुओ को रोक नहीं पाया। उस वीडियो में मैंने उन बुजुर्ग के साथ-साथ उस विकलांग क़ानून को भी देखा जो शायद इतना लाचार था की सिर्फ तमाशबीन बनकर देखता रहा, रक्षा करने वाला खुद को किनारे करता रहा और धर्म के रक्षक को आगे धकेलता रहा। और उस बुजुर्ग का आशावादी चेहरा जो उस अपंग क़ानून की आड़ लेकर मदद की अपेक्षा कर रहा था।  और यह सब तब घटित हुआ जब देश में एक तरफ हर एक शख्श महामारी से लड़ रहा है। सरकार, प्रशासन, हेल्थ सर्विस से जुड़े हर एक ...